जब तक मिल—कारखानों में खप रहे थे तब तक ये तो पता था कि आखिर इनका मालिक कौन है? पर अब ना काम है ना घर है… एक अंजान रास्ते पर बैठे हैं बिना ये जाने कि आगे क्या होगा…? कोई है जो बताए कि इनका मालिक आखिर है कौन..?
हम बात कर रहे हैं उन मजदूरों की जो किसी तरह लॉकडाउन की सीमारेखा लांघ कर अपने राज्यों के आसपास तो पहुंच गए हैं पर उन्हें सुरक्षा के लिहाज से वहीं रोक दिया गया है. यानि खाना मुंह तक आया पर जुबां पर नहीं लगा..वाले हालात हैं. सैकड़ों किमी का रास्ता पार कर जैसे ही इन मजदूरों को लगा कि अब वे घर पहुंच जाएंगे तभी उन्हें प्रशासन ने रोक लिया. बिहार, उत्तरप्रदेश, झारखंड और मप्र की सीमाओं के यही हाल हैं.
मोबाइलवाणी ने इन मजदूरों का दर्द समझने की कोशिश की तो कई कहानियां निकलकर आईं. मोबाइलवाणी के श्रोता मजदूरों के खुद अपनी जुबानी अपनी दिक्कतों के बारे में बताया है.. तो चलिए जानते हैं वो क्या कहते हैं…
बॉर्डर पर फंसे हजारों मजदूर
बिहार और झारखंड बॉर्डर पर फंसे एक मजदूर मोहम्मद असलम ने मोबाइलवाणी पर संदेश रिकॉर्ड करवा है. उन्होंने बताया कि हमें पुलिसवालों ने रोक रखा है, वो हमें घर नहीं जाने दे रहे हैं. कंपनी वालों ने हमें पहले ही भगा दिया है. अब समझ नहीं आ रहा कि कैसे रहेंगे. जब उन्होंने मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड की तब तक उन्हें दुमका रोड पर फंसे हुए करीब 9 घंटे हो चुके थे. असलम ने कहा कि करीब 5 हजार लोग और हैं जो यही हैं. हमारे घर वाले भी यहां तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. प्रशासन कोई व्यवस्था नहीं कर रहा है, जो घोषणाएं हो रही हैं वो सुविधाएं हम तक तो नहीं पहुंच रहीं. ना कोई खाना देने वाला है ना कोई पानी के लिए पूछ रहा है. जेब में पैसेे नहीं हैं आखिर हम कहां जाएं? सरकार को लॉकडाउन करने से पहले हम लोगों के बारे में विचार करना चाहिए था.
कोसो किमी. से कैसे लौटेंगे घर
केरल में बैठे एक बिहार के मजदूर ने मोबाइलवाणी से बात की. उन्होंने बताया कि लॉकडाउन की घोषणा वाले दिन राशन खरीद कर लाए थे पर अब वो खत्म हो गया है. दोबारा राशन की जरूरत है पर पैसे नहीं. काम भी बंद है. यहां से घर वापिस जाने का रास्ता भी नहीं है. सरकार खाना देने का वायदा कर रही है पर उसके लिए सरकारी आईडी प्रूफ मांगती है. हमारे पास जो है वो बिहार का है, केरल की सरकार उसे मानती नहीं. अब हमें सरकारी योजनाओं का फायदा मिले कैसे? राशन कार्ड भी नहीं है.. केरल में इस वक्त 10 हजार से ज्यादा मजदूर फंसे हुए हैं.
जालंधर में फंसे समस्तीपुर के मजदूरों ने भी मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड की है. उनमें से एक मजदूर सुबोध यादव ने बताया कि जालंधर में काम करने के लिए आए थे. जहां काम कर रहे थे वही लोग खाना भी देते थे. अब काम बंद हुआ तो खाना मिलना बंद हो गया. महीने का वेतन भी नहीं है. ठेकेदार ने रहने का इंतजाम करवाया था पर बिना पैसे अब वहां भी नहीं रह सकते. हमारे साथ छोटे बच्चे भी हैं. जिनको बिस्कुट—नमकीन खिलाकर रखे हुए हैं. बाकी लोग भूखे हैं. कोई आकर खाना बांट दे तो ठीक नहीं तो ऐसे ही दिन निकल रहा है. यहां से घर कैसे जाएं ये भी नहीं पता. राज्य सरकारों के हेल्पलाइन नम्बर पर कॉल भी किया, पुलिस को भी फोन किया पर यहां कोई नहीं आता, ना हमें खाना देता है.
राज्य सरकारों से नहीं मिल रही मदद
राज्य सरकारें दावा कर रही हैं कि वे अपने यहां काम करने वाले मजदूरों का ध्यान रखेंगी पर ये दावे खोखले हैं. खुद मजदूर बता रहे हैं कि उनके हेल्पलाइन नम्बर काम नहीं कर रहे हैं. पुलिस वाले भी मदद नहीं करते. लोगों के सामने भीख मांगने की नौबत आ गई है. कोई घर से निकल नहीं रहा है तो अब तो भीख भी नसीब होते की गुंजाइश नहीं है. बिहार के दुल्लहपुर क्षेत्र के धामूपुर गांव के रहने वाले लगभग 80 इस वक्त पुणे वासड़ क्षेत्र में फंसे हैं. इन्ही में से एक अवधेश राम ने मोबाइलवाणी को बताया कि कंपनी वालों ने लॉकडाउन की घोषणा के बाद ही हमे काम पर आने से मना कर दिया. बकाया पैसा तक नहीं दिया. वो लोग बोलते हैं कि जब काम शुरू होगा तब वापिस आ जाना. काम कब शुरू होगा पता नहीं. यहां पर कोरोना का इतना ज्यादा डर है कि लोग बाहर नहीं निकल पा रहे हैं तो फिर हम अपने घर कैसे पहुंचे. बस टैक्सी सब बंद हैं. खाने को दो रोटी नहीं मिल पा रही हैं.
मजदूरों का कहना है कि राज्य सरकारें केवल बातें कर रही हैं. हर राज्य में हजारों मजदूर हैं जो अब भी अपने घरों से दूर हैं. कंपनी वालों ने उनसे नाता तोड लिया है. सरकार की सारी अपीलों को सिरे से नकार कर मिल मालिक मनमानी कर रहे हैं. इस मामले में उनके अपने तर्क हैं. उनका कहना है कि प्रोडेक्शन हो नहीं रहा, कमाई बंद है ऐसे में वेतन कहां से दें?
तो अब सवाल ये है कि अगर कंपनी मजदूरों की नहीं, सरकार मजदूरों की नहीं तो फिर इनका असली मालिक है कौन?