मझधार में तो अगर एक तिनके का सहारा भी मिल जाए तो वो भगवान दिखाई देता है. फिर तो इस वक्त देश—दुनिया कोरोना के मझधार में फंसी है. ऐसे में अगर कोई मदद का एक हाथ बढ़ा दे तो लगता है कि बस अब आगे का रास्ता किसी तरह कट ही जाएगा.
ऐसा ही कुछ इन दिनों हो रहा है. जब से लॉकडाउन हुआ है तब से देश का सबसे निम्न तबका सबसे ज्यादा परेशान है. अपने गांव ना पहुंच पाने की दिक्कत, काम ना मिलने की दिक्कत, खाने—खिलाने की दिक्कत और फिर सुरक्षा का सवाल.. ये सब वो जरूरी चीजें हैं जो केवल वही समझ सकता है जिसने इन्हें एक साथ अचानक खो दिया हो. जाहिर सी बात है कि लॉकडाउन ही फिलहाल कोरोना को रोकने का एकमात्र तरीका है पर जरूरतें तो सबकी हैं.
सरकार दावे कर रही है कि वो हर नागरिक की जरूरत का ख्याल रखेगी पर ये दावे किस हद तक सही साबित हो रहे हैं ये तो मोबाइलवाणी पर आए श्रोताओं के संदेश से ही जाहिर हो रहा है पर उससे भी सकारात्मक कुछ हुआ है तो वो ये कि ऐसे मुश्किल समय में मोबाइलवाणी लोगों का हमदर्द बनकर उभरा है.
यानि अपनी समस्या मोबाइलवाणी पर रिकॉर्ड की और फिर चंद ही घंटों में उसका समाधान हो गया. आज हम आपके लिए ऐसी ही कुछ उदाहरण लाए हैं जो ये बताते हैं कि अगर जमीन से जुड़े लोगों के साथ काम करना है तो जमीन से जुड़ना होगा. विश्वास हासिल करना होगा तभी लोग साथ आते हैं.
घर पहुंचने में मिली मदद
असलम आज अपने परिवार के साथ हैं और खुश हैं. हालांकि काम नहीं है पर कम से कम इस मुश्किल दौर में वे अकेले नहीं है. असलम इस खुशी के लिए मोबाइलवाणी को धन्यवाद देते हैं. दरअसल असलम और उनके कई साथी बंगाल में काम किया करते थे. उन लोगों का परिवार झारखंड और बिहार में था. जब लॉकडाउन की घोषणा हुई तो बंगाल में भी कारखाने बंद हो गए. असलम अपने साथियों के साथ किसी तरह पैदल सफर करते हुए झारखण्ड राज्य के दुमका जिले तक पहुंच गए. पर यहां पुलिसकर्मियों ने सभी को धर लिया. चूंकि वे दूसरे राज्यों से होते हुए आए थे इसलिए संदिग्ध माना गया. असलम और उनके साथी जल्दी ही अपने परिवार से मिलना चाहते थे पर उन्हें जाने नहीं दिया जा रहा था. इसके बाद असलम ने मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड करवाई. मोबाइलवाणी संवाददाता महताब ने उनकी खबर को जिले के डी सी राजेश्वरी के साथ साझा किया. इसके पहले तक डीसी को इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी. जब उन्हें मजदूरों के बारे में पता चला तो उन्हें सुरक्षित घर तक पहुंचाने की व्यवस्था की गई. आज असलम और उनके साथी अपने परिवार के साथ हैं और इसके लिए वे मोबाइलवाणी को बहुत बड़ा जरिया मानते हैं.
भूखे से बिलखतों को मिला राशन
लॉकडाउन के कारण मजदूर और गरीब तबके के लोग सबसे ज्यादा परेशान हैं. रोज का काम छिन गया तो ये समझ नहीं आ रहा कि अब पेट कैसे भरें. हालांकि राज्य सरकारें भोजन देने का वायदा कर रही हैं पर ये किस हद तक पूरा हो पा रहा है ये तो वही जानते हैं जो कई दिनों से भूखें हैं. खैर सबकी ना सही पर मोबाइलवाणी उन लोगों की मदद का जरिया बना है जो कई दिनों से राशन का इंतजार कर रहे थे. दिल्ली एनसीआर कापसहेड़ा से सूरज पंडित का ही उदाहरण लीजिए. उन्होंने मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड करवाई थी. सूरज ने कहा कि उनका छोटा सा परिवार है, घर पर बच्चे हैं. काम नहीं है इसलिए पैसे नहीं है. सरकार राशन देने की बात कर रही है पर वो कैसे और कब मिलेगा पता नहीं. ऐसे में बच्चों का पेट कैसे भरें? जब यह जानकारी संवाददाता सूरज को मिली तो उन्होंने तत्काल सूरज पंडित के घर पर राशन की व्यवस्था करवाई. जिसके बाद से उसका पूरा परिवार मोबाइलवाणी को आभार दे रहा है.
हरियाणा गुरुग्राम सेक्टर 18 से इमरान खान ने मोबाइलवाणी पर बताया कि जिस दिन लॉकडाउन की घोषणा हुई उसी दिन वो मिल बंद हो गई जहां वे काम करते थे. ज्यादा वेतन नहीं था इसलिए हर दूसरे दिन राशन खरीदते और फिर खाते थे. लॉकडाउन के दूसरे दिन ही उनके पास राशन नहीं था. बच्चे भी परेशान थे. एक वक्त तो उन्हें भूखे रहने की नौबत आ गई. फिर इमरान को मोबाइलवाणी के बारे में पता चला. उन्होंने वहां अपनी समस्या रिकॉर्ड की और सामाजिक कार्यकर्ताओं तक बात पहुंचाई. नतीजा ये हुआ कि एक दिन के भीतर ही उन्हें राशन खरीदने के लिए पैसे मिल गए. इमरान अपने बच्चों को पेट भरकर भोजन करवा पाएं हैं और इसके लिए वे मोबाइलवाणी के आभारी हैं.
अधिकारियों तक पहुंच रही गुहार
मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड करना और फिर उसे आला अधिकारियों तक पहुंचाना, ताकि वे उस पर गौर कर सकें ये एक बहुत आसान प्रक्रिया है. क्योंकि अब तक आम नागरिक को इस काम के लिए सरकारी कार्यालयों के चक्कर काटने होते थे और फिर भी काम नहीं होता था. इस एक उदाहरण हैं ज्वाला बांसफोर. ज्वाला गाजीपुर के रहने वाले हैं और जलालाबाद ग्राम सभा के तहत उनका गांव आता है. यहां वे अपने परिवार के साथ रह रहे थे. सरकार ने लॉकडाउन के बाद राशन मुहैया करवाने का वायदा किया था. पर ज्वाला के पास काफी समय तक कोई मदद नहीं पहुंची. उन्होंने अपनी समस्या गाजीपुर मोबाइलवाणी पर रिकॉर्ड करवाई. संवाददाता प्रमोद वर्मा ने इस खबर को ग्राम प्रधान व कोटेदार तक पहुंचाया. यह घटना दोपहर 12 बजे की थी और शाम होते होते तक ज्वाला के घर 10 किलो निःशुल्क राशन पहुंच गया. इतना राशन की वह अपने परिवार को आराम से भोजन करवा सका.
ऐसी एक मदद कमरुद्दीन अली को मिली है और वे इस बात को कभी नहीं भूल सकते. क्योंकि लॉकडाउन के बाद कमरुद्दीन तीन दिन तक भूखे थे. उन्हें ना तो काम मिल रहा था ना ही खाने के लिए घर पर खाना था. राशन के वायदे हो रहे थे पर राशन मिलता कैसे? उन्होंने मोबाइलवाणी पर अपनी समस्या रिकॉर्ड की. जिसके बाद संवाददाता नरेश आनंद ने इसे कई लोगों के साथ शेयर किया. नतीजा ये हुआ कि कई समाज सेवी आए और कमरुद्दीन को भोजन नसीब हुआ.
संवाददाता बन रहे मददगार
मोबाइलवाणी एक सामुदायिक मीडिया प्लेटफार्म है. जहां लोग उस मीडिया की तरह काम नहीं करता जो सरकारी तंत्र का हथियार है बल्कि ये ऐसा मंच है जो लोगों के लिए बना है. हमारे संवाददाता भी आप ही के बीच के हैं. वे समुदाय में रहकर समुदाय की दिक्कतों को उजागर कर रहे हैं. उनके लिए समाधान खोज रहे हैं. असल मायनों में यही तो मीडिया का काम है.
इसी काम को जारी रखते हुए झारखण्ड राज्य के हज़ारीबाग जिला प्रखंड मुख्यालय पंचायत कटकमसांडी से रविंद्र कुमार ने काम किया है. उन्होंने एक ऐसी महिला तक मदद पहुंचाई जिसके घर में खाने के लिए कुछ नहीं था. दरअसल गांव की राधा देवी मजदूरी करके परिवार चला रहीं थीं. लॉकडाउन के बाद काम मिलना बंद हो गया तो घर में खाने के लाले पड गए. राधा देवी ने लोगों के सामने हाथ फैलाने की बजाए मोबाइलवाणी पर भरोसा किया और अपनी समस्या रिकॉर्ड की. जब यह जानकारी संवाददाता रविंद्र कुमार को मिली तो उन्होंने इस खबर को कई और लोगों के साथ साझा किया. इसके बाद कटकमसांडी पंचायत के स्थानीय समाजसेवी सौरव कुमार एवं वीरेंद्र राधा देवी से मिले. उन्होंने पर्याप्त राशन की व्यवस्था की और अब राधा देवी अपने परिवार को भोजन बनाकर खिला पा रहीं हैं.
ऐसी ही कहानी है गाजीपुर के राजनारायण राम की. लॉकडाउन के बाद उनका काम बंद हो गया. खाने के लिए जो कुछ था वो खत्म हो रहा था. कुछ ही दिनों में स्थिति ये हो गई कि राजनारायण का पूरा परिवार भूख से बिलखने लगा. उन्होंने यह समस्या मोबाइलवाणी पर रिकॉर्ड करवाई. मोबाइलवाणी के संवाददाता उपेन्द्र कुमार ने इस खबर को दुल्लाहपुर थाना अध्यक्ष तक पहुंचाया. थानाध्यक्ष विनय सिंह ने खबर पर संज्ञान लेते हुए तत्काल राजनारायण के घर पर मदद पहुंचाई. अब उनका परिवार सुरक्षित है और दो वक्त भरपेट भोजन कर रहा है. इसके लिए वे मोबाइलवाणी के आभारी हैं.
ये सब कहानियां बताती हैं कि अगर इंसान कुछ करना चाहे तो नामुमकिन नहीं है. बस करने का जज्बा होना चाहिए. मोबाइलवाणी इस मुश्किल दौर में अपने समुदाय के साथ है. हम ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि समाज का निम्न से निम्न तबका भूखा ना सोए. आप सब भी हमारे इस प्रयास के साथी बने और अपनी बात रिकॉर्ड करें.