आमतौर पर जब लोग बीमार होते हैं तो उनके पड़ोसी और रिश्तेदार उनका साथ देते हैं और हिम्मत बढ़ाते हैं. पर कोरोना संक्रमण में ऐसा नहीं हो रहा है. लॉकडाउन होने के बाद जो मजदूर सैकड़ों किमी पैदल चलकर जैसे—तैसे अपने राज्य तब पहुंचे उन्हें रोक लिया गया. कारण भी जायज था, सरकार नहीं चाहती कि उनके बहाने कोरोना संक्रमण राज्य में फैले पर सवाल ये उठता है कि आखिर उनका माई—बाप है कौन? जो मजदूर किसी तरह राज्य की सीमाओं पर अपनी स्वास्थ्य जांच करवाकर शहर में दाखिल हुए हैं उन्हें सीधे घर नहीं भेजा जा रहा है. शासन ने उन्हें कम से कम 14 दिन तक आइसोलेशन में रखने के निर्देश दिए हैं.
इन निर्देश के बाद सरकारी स्कूल, लॉज और सामुदायिक भवनों में ठहरने की व्यवस्था की गई है. पर यहां कुछ तो ऐसा हो ही रहा है जो लोग आइसोलेशन में रहने को तैयार नहीं है. आए दिन मजदूरों की आइसोलेशन से भाग जाने की खबरें आ रही हैं. जब इस मसले की तह तक जाने की कोशिश की गई तो हमें कुछ और ही तस्वीर देखने मिली. चलिए मोबाइलवाणी पर मजदूरों की जुबानी ही सुनते हैं कि आखिर क्या है उनके आइसोलेशन में ना रूक पाने की वजह.
अव्यवस्थाओं से घिरे वार्ड
बिहार राज्य के चम्पारण जिला से प्रिंस ने मोबाइलवाणी पर अपनी बात रिकॉर्ड की है. वो कहते हैं कि देश के कई राज्यों से 1888 और सऊदी अरब मिसिर कुवैत से 21 लोग कल्याणपुर प्रखंड पहुंचे हैं. जहां उन्हें आइसोलेशन में रखा गया. पर ये आइसोलेशन सेंटर केवल नाम का है. यहां ना तो लोगों के ठहरने की सही व्यवस्था है ना खाने के लिए समय पर कुछ मिल रहा है. आखिर इतना लंबा सफर तय करके घर आने का मतलब क्या हुआ. सरकार की सुरक्षा नीति अपनी जगह है पर आइसोलेशन में रखकर लोगों को भूखा रखना कहां तक सही है? यही कारण है कि लोग सेंटर में रहने को तैयार नहीं है और यहां से भाग जाते हैं. ऐसे में उनका परिवार भी खतरे में आ रहा है.
प्रिंस के अलावा कई और लोगों ने मोबाइवालणी पर इसी तरह की शिकायतें दर्ज करवाई हैं. समस्तीपुर के मोहनपुर प्रखंड के आइसोलेशन वार्ड में भी कुछ यही हाल है. मोबाइवालणी संवाददाता सकल कुमार जब वार्ड की हालत देखने पहुंचे तो पता चला कि वहां क्षमता से ज्यादा लोगों को ठहराया गया है. लोगों के पास ओढने—बिछाने तक की व्यवस्था नहीं है. शौचालय इतने गंदे है कि उनका उपयोग नहीं हो सकता. ऐसे में भला लोग कैसे सुरक्षित और स्वथ्य रहेंगे?
इन मौतों का जिम्मेदार कौन
कोरोना ने इतनी तेजी से हमारे देश में पांव पसारे हैं कि सरकार के पास लॉकडाउन के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा. पर इसमें मजदूरों का क्या कसूर. खासतौर पर उनका जो दूसरे राज्य में हैं और अब किसी तरह अपने घर पहुंचने की कोशिश में हैं. कई मजदूरों के लिए तो ये मौत का सफर बन गया है. बिहार के सासाराम से मोबाइलवाणी संवाददाता ऋतुराज ने जानकारी दी है कि प्रयागराज से पैदल अपने घर आ रहे मजदूर विलास महतो की मौत हो गई. वह वैशाली के भगवानपुर थाना अंतर्गत तिरमपुर पश्चिम टोला का रहने वाला था. प्रयागराज में काम बंद होने के बाद अपने घर लौट रहा था. अचानक रास्ते में उसके पेट में दर्द हुआ और समय पर इलाज ना मिल पाने के कारण मौत हो गई.
इसके अलावा बिहार के रास्ते में कुछ और मजदूर भी हादसों का शिकार हुए हैं. कई मजदूरों की तबियत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि वे आइसोलेशन वार्ड तक नहीं पहुंच पाए. उन्हें किसी तरह वार्ड में पहुंचाया गया पर यहां भी इलाज के नाम पर कुछ नहीं मिल रहा है.
लोगों के असहजता का क्या करें?
एक दूसरी दिक्कत सामुदायिक स्तर पर भी आ रही है. कई लोग ऐसे हैं जिन्हें गांव की सीमाओं पर आइसोलेशन वार्ड बनाने से दिक्कत है. उन्हें लगता है कि ऐसे में गांव के लोगों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है.
दुनिया में कोरोना वायरस का ख़तरा बढ़ने के साथ ही इसे एक सामाजिक कलंक की तरह देखा जाने लगा है. कई जगहों पर लोग मरीजों के प्रति सहानुभूति रखने के बजाय असंवेदनशीलता दिखा रहे हैं. टीबी और एड्स की तरह ही लोग कोरोना वायरस में भी मरीजों और उसके करीबियों से अछूत की तरह व्यवहार कर रहे हैं. इसी का परिणाम है कि देश के कई हिस्सों से लोगों के आइसोलेशन वार्ड से भाग जाने या फिर आत्महत्या जैसे घातक कदम उठा लेने की खबरें आ रही हैं. दुनिया में कोरोना वायरस का ख़तरा बढ़ने के साथ ही इसे एक सामाजिक कलंक की तरह देखा जाने लगा है. कई जगहों पर लोग मरीजों के प्रति सहानुभूति रखने के बजाय असंवेदनशीलता दिखा रहे हैं. टीबी और एड्स की तरह ही लोग कोरोना वायरस में भी मरीजों और उसके करीबियों से अछूत की तरह व्यवहार कर रहे हैं.
झारखंड राज्य के बोकारो जिला के कसमार प्रखंड से कमलेश जायसवाल मोबाइल वाणी के माध्यम से कहते हैं कि प्लस टू उच्च विद्यालय कसमार में क्वॉरेंटाइन सेन्टर बनाया गया है. जब से ये सेंटर शुरू हुआ है तब से ग्रामीण इसका विरोध कर रहे हैं. उन्हें डर है कि कहीं आइसोलेशन में रहने वाले लोगों के कारण वह पूरी जगह संक्रमित ना हो जाए.
बिहार राज्य के चम्पारण जिला से राजू सिंह मोबाइल वाणी पर बताते हैं कि कोरोना संक्रमण को लेकर घोड़ासहन प्रखंड के जमुनिया मध्य विद्यालय के आसपास अजीब सा माहौल हो गया है. इस स्कूल कोे जब से आइसोलेशन सेंटर बनाया गया है ग्रामीण असहज महसूस कर रहे हैं. इतना ही नहीं यहां पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं है कि लोग आराम से रह सकें इसलिए वे दिनभर सेंटर में रहते हैं पर फिर घर चले जाते हैं. हालांकि ऐसा करना खतरों से खेलने जैसा है पर सरकार को ध्यान देना चाहिए कि वे सेंटर्स में जरूरत की चीजें पहुंचाएं. अगर यहां लोगों को खाना, सुरक्षा जैसी बुनियादी चीजें मिलें तो भला लोग क्यों भागेंगे?