कोरोना वायरस के कारण पूरा देश लॉकडाउन है. इसका असर सबसे ज्यादा गरीबों, मजदूरों और किसानों पर पड़ता दिख रहा है. फसल तैयार है, पैदावार भी किस्मत से इस बार कुछ ज्यादा ही अच्छी हुई है पर ये खुश होने वाली बात नहीं. क्योंकि हमारे देश के अन्नदाता को ये समझ नहीं आ रहा कि अनाज का करना क्या है? वायरस के डर से देश बंद है, लोग घरों से बाहर नहीं आ रहे और जिस किसान ने खून पसीना बहाकर इस फसल को तैयार किया था उसकी फसल खरीदने वाला कोई नहीं.
इस पर से सरकारी फरमान. कि फसल काटने के लिए एक स्थान पर 5 से ज्यादा लोग जमा नहीं हो सकते. खैर सरकार का ये फरमान लोगों की सुरक्षा के लिए ही है. क्योंकि वायरस का खतरा गहराता जा रहा है इसलिए ये आदेश जरूरी हो गया पर किसानों का दर्द अपनी जगह है.
इस दर्द को समझने के लिए मोबाइलवाणी किसानों के बीच पहुंचा. कुछ जगहों पर तो किसान इतने दुखी मिले कि उन्होंने बात करने से ही इंकार कर दिया और कुछ को आस नजर आई. तो चलिए उन्ही की जुबानी उनकी तकलीफ को समझते हैं.
सुनने वाला कोई नहीं
उत्तरप्रदेश राज्य से प्रमोद वर्मा ने गाज़ीपुर मोबाइल वाणी पर अपनी व्यथा रिकॉर्ड की. उन्होंने कहा कि खेत में सब्जियां बोईं थीं और कुछ हिस्से में अनाज. अब पूरी फसल तैयार है. बाहर के मजदूर नहीं मिले इसलिए हम घर परिवार वालों ने ही फसल काट ली. दिक्कत ये है कि इसे बाजार तक कैसे पहुंचाएं. अगर ढो कर बाजार ले जाते हैं तो पुलिस वाले रोक लेते हैं. डंडे मारते हैं भगा देते हैं. अब सब्जियां रखी रखी खराब हो रही हैं और अनाज के साथ ही यही समस्या है. एक और किसान ने बताया कि उसने आलू की खेती की है पर पुलिस के डर के कारण वे अपने खेत पर भी नहीं जा पा रहे हैं.
जमुई जिला से मुन्ना यादव मोबाइल वाणी पर बताते हैं कि शहर से काम खत्म हुआ तो सोचा खेत ही सम्हाल लेंगे पर यहां तो वो भी नहीं हो पा रहा है. खेत से फसल काटना है पर पुलिस वाले घर से बाहर ही नहीं जाने दे रहे हैं. गांव में मजदूर भी नहीं है कि उनसे काम करवाएं. हमें तो समझ ही नहीं आ रहा कि इस साल कैसे गुजारा होगा.
सरकार से आस लगाए हैं
बोकारो के किसान हरक लाल महतो कहते हैं कि मैं 20 साल से खेती कर रहा हूं. सरकार से उम्मीद थी कि वो पानी पहुंचाएगी हमारे खेतों तक पर ऐसा नहीं हुआ. जैसे तैस करके हम लोग खुद ही इंतजाम कर रहे हैं. अब जब फसल तैयार हो गई है तो पुलिस वाले बाहर नहीं निकलने देते हैं. कोरोना का डर भी अलग है. हम क्या करें समझ में नहीं आ रहा.
खगरिया जिला के गोगरी प्रखंड के रामपुर दियारा सहित आसपास के गांव का हर किसान परेशान है. वहां से रविंद्र कुमार ने बताया कि खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं. हम चाह कर भी फसल नहीं काट पा रहे हैं. अगर जल्दी फसल नहीं काटी तो फिर वो किसी काम की नहीं रहेगी. सरकार को हमारे बारे में सोचना चाहिए. कुछ तो इंतजाम करना ही चाहिए.
समस्तीपुर में कृषि सामान बेचने वाले मनोज कुमार ने मोबाइलवाणी पर अपनी बात रिकॉर्ड की है. वे कहते हैं कि लॉकडाउन के बाद किसान दुकान पर नहीं आ पा रहे हैं. हम भी बहुत कम वक्त के लिए ही दुकान खोल पाते हैं. ये वो वक्त है जब देशभर में फसल तैयार है और किसान उसे काटकर बेचना चाहता है. यही वक्त हमारे लिए भी जरूरी है पर इस बीमारी ने सब खराब कर दिया है. सरकार को कुछ ना कुछ व्यवस्था करना ही चाहिए ताकि इस नुकसान की कुछ तो भरपाई हो.
फेंक रहे हैं सब्जियां
कुछ जगहों पर तो आलम ये है कि किसान खराब सब्जियों को फेंक रहे हैं. पुलिस की नाकाबंदी के कारण वाहन एक राज्य से दूसरे राज्य में नहीं जा पा रहे हैं. कुछ फल—सब्जियों से भरे कई ट्रक राज्यों की सीमाओं पर खड़े हैं. जहां 1 हफ्ता गुजरने के बाद वो पूरी तरह से खराब हो चुकी हैं. टमाटर, संतरे, अंगूर की फसल खराब हो रही है. हालात इतने बुरे हैं कि किसान इन्हें नालों में डंप कर रहे हैं.
इस बीच पीएम मोदी ने किसानों के खाते में किस्त के 2 हजार रुपए डाल दिए हैं पर जो नुकसान हुआ है वो इससे कहीं ज्यादा है. और आने वाले नुकसान का तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है. बड़ी संख्या में फरवरी के अंत और मार्च के शुरुआती दिनों में होने वाली आलू की खुदाई अटक गई है. अगर खुदाई हो गई है तो मंडी और कोल्ड स्टोरों में पहुंचने में दिक्कतें आ रही हैं. कीमतों में गिरावट का डर भी किसानों को सता रहा है. फलों और सब्जियों के बाजार तक नहीं पहुंचने का खामियाजा देश के कई हिस्सों में किसानों को भुगतना पड़ रहा है. असर दहलन और तिलहन किसानों पर भी पड़ रहा है, कि उनकी उपज मिलों तक कैसे पहुंचे. मंडियों में सामान्य कामकाज नहीं होने पर किसानों को वाजिब दाम कैसे मिलेंगे. यही नहीं, मार्च के मध्य में शुरू होने वाली गेहूं की सरकारी खरीद अभी तक शुरू नहीं हो सकी है. उम्मीद है कि 14 अप्रैल तक चलने वाले 21 दिन के लॉकडाउन के खत्म होने के बाद गेहूं की सरकारी खरीद शुरू हो सकेगी. इन परिस्थितियों में सरकारी खरीद की व्यवस्था भी प्रभावित हो सकती है. इसके पहले गेहूं की कटाई में देरी से भी किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है. बात केवल इन किसानों की ही नहीं है. लोगों में फैली भ्रांति के चलते देश का पॉल्ट्री सेक्टर भारी संकट में फंस गया है और इन किसानों को कीमतों में आई भारी गिरावट के चलते नुकसान हो रहा है. इसी तरह संगठित क्षेत्र में दूध की खरीद को छोड़ दें तो असंगठित क्षेत्र में दूध की बिक्री करने वाले किसानों को भी कीमतों में गिरावट का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है.
किसानों को सरकार का साथ चाहिए
जिस तरह की परिस्थिति का किसानों को सामना करना पड़ रहा है उसमें उन्हें वित्तीय पैकेज दिया जाना जरूरी है. इस बात की काफी संभावना है कि आने वाले दिनों में सरकार कॉरपोरेट जगत को वित्तीय पैकेज दे, क्योंकि अर्थव्यवस्था भारी संकट से गुजर रही है और उसे पटरी पर लाने के लिए कॉरपोरेट जगत और तमाम अर्थविद इस तरह के पैकेज की जरूरत बता रहे हैं. इस महामारी के बावजूद देश में हर किसी को भोजन की पुख्ता व्यवस्था किसानों की मेहनत से ही संभव है. इस महामारी से पैदा हालात में भी खाद्य सुरक्षा को लेकर किसी तरह की चिंता नहीं है, तो उसकी वजह किसान और कृषि क्षेत्र ही है. ऐसे में मुश्किलों का सामना कर रहे किसानों के लिए सरकार को समय रहते बड़ा पैकेज घोषित करना चाहिए जो इनकी मुश्किलों को कम कर सके. सरकार किसानों के कर्ज पर ब्याज माफ करने का कदम तो उठा ही सकती है. रिजर्व बैंक ने मध्य वर्ग को ईएमआइ चुकाने में तीन माह की राहत देने की एडवाइजरी बैंकों को पिछले दिनों जारी की है, तो किसानों के लिए कुछ इस तरह का कदम वाजिब बनता है जो इस महामारी के समय में भी अपने खेतों में खड़ा है.