भारत में भी तक़रीबन 50 करोड़ लोग आज भी पारंपरिक चूल्हों पर खाना बनाते हैं. जो शहरी लोग गैस पर खाना पकाकर खाने के आदि हैं उनके लिए तो चूल्हे पर पके खाने का स्वाद हमेशा ही पहली पसंद होती है , कईयों ने तो ग्रामीण टूरिज्म में चूल्हे पर पके खाने का व्यंजन अपने मेनू कार्ड में दाल दिया . पर जो फेफड़े इन चूल्हों की आग जलाए हुए हैं उनका क्या? विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल तक़रीबन 15 लाख लोगों का अंदेशा जताया था. घरेलू प्रदूषण और मौत के आंकड़े को देखते हुए केंद्र सरकार की बहूतही महत्वाकांक्षी प्रधान मंत्री उज्जवला योजना के रूप में सामने आई.
इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने रसोई गैस के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए 1 मई 2016 को उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले से इस योजना की शुरूआत की. जिसके तहत बीपीएल परिवार की महिला, जिसके पास गैस कनेक्शन नहीं है वह नि:शुल्क गैस सिलेंडर पाने की हकदार बनी. इस योजना की जानकारी आपको सभी पेट्रोल पंप पैर प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के फोटो के साथ बड़े बड़े होर्डिंग्स दिख जाएंगे. सरकार ज़्यादा से ज़्यादा कनेक्शन बांटकर अपनी पीठ थपथपाने को बेचैन दिख रही है। इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि जिन महिलाओं को मुफ़्त गैस कनेक्शन दिए गए हैं, क्या उन्होंने दोबारा सिलेंडर में गैस भरवा पायी या नहीं ?
इस योजना का लाभ पाने के लिए आज भी कई गरीब परिवार काम—धंधा किनारे धरकर एजेंसी के बाहर लाइन लगाए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं और जिन्हें सूची में जगह मिल गई है उनके नाम पर धोखाधड़ी हो रही है कोरोना काल में और ताला बंदी की वजह से जहाँ गरीबों ने अपनी आजीविका का साधन गंवाया, वही प्रधान मंत्री गरीब कल्याण योजना के नाम पर पहले 3 महीने यानी अप्रैल , मई और जून के लिए केंद्र सरकार की और से सभी उजावाना योजना का लाभ उठा रहे परिवारों के खाते में गैस की रकम डालने का एलान हुआ और ऐसा माना गया की सभी उजवाला धारकों ने तो अपना बैंक अकाउंट यानी जनधन खता पहले से ही दे रखा है इसलिए उनके खाते में आसानी से गैस की रकम पहुंचा दिजाएगी और इस पैसे का इस्तेमाल केवल गैस खरीदने के लिए ही परिवार इस्तेमाल करेगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं. विषय की गंभीरता और जनधन खाताधारकों की परीशानियों के देखते हुए मोबाइल वाणी ने गरीब परिवारों के दर्द और योजनाओं का लाभ उठाने से दूर रह परिवारों की मूल समस्याओं को समझने को समझने का प्रयास किया , आइये आपभी जाने वह क्या हैं ?
किसी जंग से कम नहीं सिलेंडर पाना
बिहार के जमुई जिले के मिर्चा गांव से मुन्ना पाठक बताते हैं कि कुछ साल पहले मां के नाम से उज्जवला योजना के लिए पंजीयन करवाया था. मुन्ना कहते हैं सारे जरूरी दस्तावेज जमा करवाए थे पर सिलेंडर नहीं मिला. अब मां भी गुजर गईं, परिवार में कोई और महिला नहीं है. इसलिए सिलेंडर मिलने की उम्मीद ही खत्म हो गई. पहले मां चूल्हा फूंक रही थी अब मैं फूंक रहा हूं. गाजीपुर के जलालाबाद के विशुनपुरा निवासी सत्यदेव राजभर कहते हैं कि योजना का लाभ पाने के लिए बहुत मुश्किल से सारे कागज जमा किए थे. बहुत कोशिशों के बाद पात्रता सूची में नाम आया पर सिलेंडर आज तक नहीं मिला. क्यों नहीं मिला इसका जवाब ना तो एजेंसी वाले देते हैं ना कही और से कुछ पता चलता है. सत्यदेव कहते हैं कि अगर योजनाएं ऐसी ही हैं तो फिर उन्हें बनाने की जरूरत ही क्या है? गरीब आदमी तो चूल्हा ही फूंक रहा है.
राष्ट्रीय सांख्यकी कार्यालय की साल 2018 की रिपोर्ट की मानें तो इस योजना के लाभार्थियों तक सुविधा पहुंची ही नहीं है. सरकार ने 8 करोड़ से ज्यादा महिलाओं को एक साथ नि:शुल्क गैस कनेक्शन बांटे थे. लेकिन रिपोर्ट में दावा किया गया कि करीब 43 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं ऐसी रहीं जो केवल एक बार गैस सिलेंडर का इस्तेमाल कर सकीं और फिर चूल्हे पर लौट आईं. डाटा बताता है कि पिछले 4 सालों में प्रधानमंत्री उज्जवला योजना कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में कुल एलपीजी कनेक्शन में 71 फीसदी की बढोत्तरी की है. हालांकि यह हकीकत सरकारी कागजों पर दर्ज हुई है. एनएसओ के सर्वे में बताया गया है कि योजना के 43 प्रतिशत लाभार्थी चूल्हे पर ही खाना बना रहे हैं. और ऐसा क्यों हो रहा है ये इसका जवाब मोबाइलवाणी पर आईं प्रतिक्रियाओं से मिल जाएगा.
जमुई के चकाई प्रखंड के रहने वाले परमेश्वर कहते हैं कि मेरा नाम योजना की पात्रता सूची में है पर सिलेंडर नहीं मिला. जब पता करने गए तो एजेंसी वालों ने कहा कि मेरे नाम का सिलेंडर किसी और को दे दिया गया है. जब पूछा कि ऐसा क्यों किया तो उनके पास कोई जवाब नहीं था. ना तो हमारी शिकायत कोई दर्ज करता है ना ही मदद. सरकार को लग रहा होगा कि गरीबों को सिलेंडर मिल रहा है पर हकीकत में तो ऐसा नहीं है.
बिचौलियों का खेल भी है जारी
गाजीपुर जनपद के जखनियां ब्लॉक के रायपुर की मीरा बताती हैं कि दो साल पहले एक बिचौलिए को सारे कागज और फार्म भरकर दिए थे. वो बोला था कि कनेक्शन दिलवा देगा पर ऐसा हुआ नहीं. एजेंसी में पता किया तो बोलते हैं कि कनेक्शन तो मिल चुका है और सिलेंडर भी जा रहा है पर कहां जा रहा है पता नहीं? क्योंकि हमें तो आज तक नहीं मिला. रायपुर में मीरा जैसी और भी कई महिलाएं हैं जो इन्हीं बिचौलियों के चक्कर में योजना से वंचित रह गईं.
गांव की ही अंजना कहती हैं कि हम तो पढ़े—लिखे हैं नहीं, गांव का ही एक आदमी हमसे बोला था कि फ्री में गैस सिलेंडर दिलवाएगा. हमने उसके सब कागज दे दिए थे पर सिलेंडर नहीं मिला. अब तो दो साल हो गए. जिससे काम करवाया था वो आदमी भी मर गया. एजेंसी वाले कहते हैं उसी को साथ लाओ जिसने कनेक्शन दिलवाने का कहा था. अब कहां से लाएं उसे?
ज्यादातर गांवों में यही स्थिति है. गांव की महिलाएं योजना के बारे में पूरी जानकारी नहीं रखती थीं. फार्म भरना उनके बस में नहीं था जिसका फायदा एजेंसी संचालकों और बिचौलियों ने खूब उठाया. एजेंसी के चक्कर लगाना, बिचौलियों से बहस करना गरीब परिवारों के बस की बात नहीं. इसपर से कंडे और लकड़ी सुलभता से मिल भी जाते हैं इसलिए लोग वापिस पारंपरिक चूल्हों का रूख करने लगे है.
झारखंड के पेटरवार के गो पंचायत में गैस एजेंसी संचालक गैस सिलेंडर की आपूर्ति नहीं कर रहे हैं जिसके कारण उज्जवला योजना के लाभार्थियों को सिलेंडर नहीं मिल पा रहे हैं. एजेंसी जाने पर उन्हें बताया जाता है कि सिलेंडर पहले ही भिजवाया जा चुका है. कुलगो डुमरी गैस एजेंसी की तरफ से उज्जवला योजना के करीब 200 लाभार्थियों को सिलेंडर दिया जाना है पर ये सिर्फ कागजों पर चल रहा है. गैस सिलेंडर एक बार देने के बाद एजेंसी वाले महीनों तक शक्ल नहीं दिखाते, सिलेंडर रिफिल नहीं होते और मजबूर होकर घरों में फिर से चूल्हा जलने लगता है. जबकि सरकारी दस्तावेजों में इन परिवारों को समय पर गैस आपूर्ति हो रही है. इसी तरह झारखंड के हजारीबाग के टाटीझरिया से भी ग्रामीण यही शिकायत कर रहे हैं. गैस एजेंसी का नाम भी कुलगो गैस एजेंसी बताया जा रहा है. गांव की जासो देवी, जेमनी देवी, ललिता देवी, हेमंती देवी समेत दर्जनों परिवारों की महिलाएं एजेंसी के चक्कर काट—काटकर परेशान हैं.
इसी क्रम में जब मोबाइल वाणी की टीम बिहार के नालंदा जिले के चंडी प्रखंड की कुछ महिलाओं से बात किया तो इन महीनों का कहना था की उन्होंने ने गैस का सिलेंडर तो लिया था तब पैसा नहीं लगा था लेकिन उसे भरवाने जाने औ आने के लिए टेम्पू लेना पड़ता है जिसका किराया दोनों तरफ का 200 रुपया लगता है इसके अलावा 800 के करीब गैस का पैसा पहले जमा करना होता है यानी 1000 का गैस सिलेंडर कहाँ से लायें इतना पैसा इसलिए गैस भरवाना ही छोड़ दिया अब लकड़ी ही भोजन बनाने का सहारा है.
कोरोना काल टूट गई कमर
इस योजना का दम पहले से ही घुट रहा था पर कोरोना काल में इसी हालत बद से बदत्तर हो गई. जिन कुछ लाभार्थियों को उम्मीद थी कि खाते में सिलेंडर की राशि पहुंच जाएगी वे अब तक इंतजार ही कर रहे हैं.
जमुई के चकाई से मुन्ना कहते हैं कि अप्रैल मई की किस्त आ चुकी है पर जून से लेकर अब तक गैस सिलेंडर के बदले मिलने वाली राशि खाते में नहीं आई है. आसपास के गांव में भी लोगों के खाते खाली हैं. अब ऐसे में उनके सामने सवाल है कि सिलेंडर रिफिल कैसे करें? गांव के लोग पहले ही लॉकडाउन के चक्कर में बेरोजगार हो गए हैं. मनरेगा में काम की तलाश करो, सरकारी राशन पाने के लिए डीलर के यहां चक्कर काटो और फिर अगर मुश्किल से कुछ मिल जाए तो उसे पकाने के लिए कंडों और लकडी का इंतजाम करो. क्योंकि सरकार भले कह ले कि गरीबों तक सिलेंडर पहुंच रहा है पर ऐसा हुआ नहीं है.
इसी क्षेत्र में गीता देवी हैं, जिनके पति बताते हैं कि सिलेंडर पत्नी के नाम पर है. हमने पिछली राशि मिलने पर सिलेंडर रिफिल करवाया था. सबकुछ नियमानुसार हुआ इसके बाद भी हमें अगले माह की सिलेंडर रिफिल राशि नहीं मिली. बिहार राज्य के मुजफ्फरपुर जिले के ग्राम बहोरा से मीरा देवी बताती हैं कि सरकार ने नि:शुल्क राशन देने की बात कही थी पर बीपीएल कार्ड होने के बाद भी राशन दुकानदार ने हमें राशन नहीं दिया. कुछ दिन मजदूरी करके अनाज जमा किया था, सोचा था उज्जवला योजना के सिलेंडर की राशि खाते में आएगी तो गैस भर लेंगे पर वो पैसा भी नहीं आया.
केंद्र सरकार ने मार्च के आखिरी सप्ताह में 1.7 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी. जिसमें लॉकडाउन के कारणपैदा हुए आर्थिक संकट से गरीब लोगों को उबारने के उद्देश्य से किया गया था. इसके तहत अप्रैल से जून तक उज्ज्वला योजना की लाभार्थी महिलाओं को मुफ्त सिलेंडर देने की भी घोषणा की गई थी. इस योजना के तहत लगभग 7.5 करोड़ महिलाओं के खाते में 9,670 करोड़ रुपये की राशि हस्तांतरित की गई. लेकिन 76.47 लाख महिलाओं के खाते में कोई राशि हस्तांतरित नहीं की जा सकी. अब सरकार कह रही है कि इनमें से 31 लाख महिलाओं को खाते में समस्या के कारण सरकारी मदद नहीं मिल सकी. पर सवाल ये है कि खाते की दिक्कत कोरोना काल में ही सामने कैसे आई? क्योंकि इसके पहले उनके खातों में सब्सिडी की राशि पहुंचाई गई थी. इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के 31 लाख लाभार्थी खाते में धनराशि स्थानांतरित नहीं कर सके, क्योंकि खाता आधार से लिंक नहीं था, या केवाईसी अपडेट नहीं होने के कारण खाता बंद या निष्क्रिय था.
जानकारी के अनुसार हिंदुस्तान पेट्रोलियम की तरफ से 72.96 लाख (अप्रैल से जून) के खाते में भेजी गई राशि लाभार्थियों को मिली है. इसके अलावा, इंडियन ऑयल की ओर से 2,58,746 लेनदेन (1 अप्रैल से 29 जुलाई) विफल रहे हैं. जबकि भारत पेट्रोलियम के 92,331 लेनदेन (1 अप्रैल से 8 अगस्त) विफल रहे हैं.
मोबाइल वाणी की ओर से द्वारा संस्था के सहयोग से शोध अध्यनन के दौरान मुंगेर , जमुई और गाजीपुर के दर्जनों महिलाओं से उजवाला योजना का लाभ न मिलने की समस्या पर जब बात की गयी तो पाया की ग्रामीण के पास सुलभ माध्यम से शिकायत दर्ज करने की व्यवस्था नहीं है की अगर गैस एजेंसी धांधली करती है तो इसकी शिकायत कहाँ करें ? दूसरी और जायदातर गैस एजेंसी स्थानीय बाहुबली , प्रखंड प्रमुख , विधयक और मुखिया जी के परिवार के सदस्य चलाते हैं जिनके खिलाफ शिकायत करना किसी जोखिम से कम नहीं . वहीँ बैंकों में आधार कार्ड का जुडाव , खाते में मोबाइल को लिंक करना, अनगिनत बार अंगूठे का निशान न मिलना , किसी तरह ग्राहक सुविधा केंद्र चले जाओ तो उसकी अपनी मनमानी, पैसे आने पर भी सही जानकारी न देना, गुप चुप तरीके से खाते से पैसे का हस्तांतरण कर लेना और कह देना की तुम्हारे खाते में तो पैसे आए ही नहीं आम हैं . यह सब लिखना इसलिए जरूरी है की नीतिनिर्माताओं को योजनाओं की रूप रेखा तैयार करते समय और क्रियान्वयन के समय इन समस्याओं पर नज़र रख कर ही योजना का लाभ सभी के लिए सुगम बनाया जा सकता है.
कुल मिलाकर बात बस इतनी है कि जिन घरों में चूल्हे की राख ठंडी ही हुई थी वहां फिर से अंगार जल रहे हैं. प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के सिलेंडर घरों में शोपीस बनकर रह गए हैं.