Our Blog

Gramvaani has a rich history of developing mixed media content that includes audio-video stories, developing reports based on surveys conducted with population cut off from mainstream media channels and publishing research papers that helps in changing the way policies are designed for various schemes. Our blog section is curation of those different types of content.

#lockdown: कंपनी वालों ने मजदूरों को भूख से मरते छोड़ा

admin 28 May 2021

कोरोना का कहर अब धीरे—धीरे पूरे देश को अपनी चपेट में ले रहा है. सरकार के तमाम प्रयास भी मरीजों की संख्या में हो रहे इजाफे को रोक नहीं पा रहे हैं. भारत कोरोना संक्रमण के फेस 3 में ना पहुंच जाए इसलिए पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया गया है. जरूरत की चीजें मिल रही हैं पर वो भी मशक्कत से.

यूं तो लोग इसे अमीरों की बीमारी बता रहे हैं पर इससे सबसे ज्यादा अगर किसी पर असर हुआ है तो वो गरीब और निम्न तबके के लोगों पर. वे लोग जिनकी कमाई ही इतनी है कि वे उससे दो वक्त का राशन खरीद पाते. इनकी मदद के लिए राज्य सरकारें आगे आ रही हैं. केन्द्र सरकार ने सभी निजी कंपनियों से आग्रह किया है कि वे अपने यहां काम करने वाले कमर्चारियों का वेतन ना काटें, उन्हें काम से ना निकालें और कारखानों के मालिक मजदूरों के अपने यहां ही रोके ताकि पलायन के खतरे से वायरस ना फैले.

पर लॉकडाउन के बाद से ही मीडिया में मजदूरों के पलायन की भयावह तस्वीरें आ रही हैं. कोई इन्हें गलत बता रहा है तो कोई सरकार की खामियां गिना रहा है. पर उन मिल मालिकों का क्या जो सालों से इनसे काम निकलवा रहे हैं और अब मुसीबत के वक्त अकेले मरने छोड़ दिया गया है. तकलीफ की दोतरफा मार झेल रहे मजदूरों ने मोबाइलवाणी पर अपनी आप बीती बयां की हैं.

कंपनियां बंद होने की खबरें

गुजरात राज्य के अहमदाबाद से रविंदर सिंह ने साझा मंच मोबाइल वाणी पर बताया है कि कंपनियां पहले 10 दिन के लिए बंद हुईं थी. तो हमनें सब्र रखा, कंपनी वाले भी हमें रोके हुए थे. पर जब से पूरी तरह से लॉकडाउन हुआ है कंपनी के अधिकारी हमसे बात तक नहीं कर रहे हैं. वेतन दिया नहीं, रहने की जगह नहीं, खाना नहीं.. ऐसे में अगर पलायन ना करें तो क्या करें? हरियाणा के गुरुग्राम सेक्टर 18 से सोनू ने साझा मंच मोबाइल वाणी पर अपनी बात रिकॉर्ड की है. वो कहते हैं कि कंपनी बंद होने की खबर सोशल मीडिया पर चल रही है. लॉकडाउन के कारण हमें सही जानकारी भी नहीं मिल पा रही. अगर कंपनी बंद हो जाती है तो हमारा क्या होगा? इसलिए अभी से घर जाने की कोशिश में लगे हुए हैं.

उत्तरप्रदेश से रमेश सोनी ने बताया कि महामारी को लेकर लॉक डाउन होने से मजदूरों दिहाडी की दिक्कत हो रही है. क्योंकि हमें तो रोज काम के बाद पैसे मिलते थे. तब जाकर घर का राशन खरीदते थे. अगर काम ना मिले तो कहां के पैसे कहां का राशन. सरकार कह रही है कि मदद करेगी पर हमें भरोसा नहीं है. पुलिस की सख्ती अलग है.

हाल ही में मुंबई से उत्तरप्रदेश लौैटे श्रमिक सुनील यादव ने बताया कि कंपनियां बंद हो गईं है. और सुन रहे हैं कि अब ये दोबारा नहीं खुलने वाली. ऐसे में वहां रहकर क्या करते? घर आकर कम से कम खेती ही कर के गुजरा कर लेंगे.

भूख से मर जाएंगे

तमिलनाडु के तिरुपुर से मोबाइलवाणी के संवाददाता बाबुलिटी ने वहां के मजदूरों की दिक्कतों के बारे में बताया है. वे कहते हैं कि कई हिंदीभाषी मजदूर यहां मिलों में काम कर रहे थे. मिलें बंद हो गईं हैं और नया काम नहीं मिल रहा है. ऐसे में अगर मजदूर अपने घर नहीं पहुंचे तो यहां भूख से मर जाएंगे. दिल्ली की एक मिल में काम करने वाले सोनू कहते हैं कि सरकार ने मकान मालिक को किराए में छूट देने के लिए कहा है पर ये कोई आदेश तो है नहीं. इसलिए मकान मालिक मानने के लिए तैयार नहीं है. काम है ना तो किराया कहां से भरेंगे?

मिल बंद होने के बाद अपने गांव लौट रहे मोबाइलवाणी के एक श्रोता ने संदेश रिकॉर्ड करवाया है. उन्होंने कहा कि बाकी लोग अपने लिए राशन का इंतजाम कर सकते हैं पर हमारा क्या? दुकानें अगर खुली भीं हैं तो हमारे पास पैसे कहां हैं? सरकार पैसे देने का एलान कर रही है पर क्या इतने से काम चल जाएगा? पहले हमारा पूरा परिवार मजदूूरी करता था अब कोई नहीं. सरकार अगर हजार रुपए देगी भी तो परिवार के एक सदस्य को! आखिर इतने में कैसे गुजारा होगा?

गुजरात से रविंदर सिंह ने बताया है कि अहमदाबाद में सिलाई कंपनी,कपड़ा फैक्टरियाँ बंद हो गईं हैं. यहां के मजदूर एक दिन में ही परेशान हो गए हैं. कुछ एनजीओ वाले खाना बांट कर गए थे पर ये लॉकडाउन तो महीने भर चलेगा, कोई रोज तो हमें खाना नहीं खिलाएगा ना. ऐसे में पलायन करने के अलावा और क्या चारा होगा मजदूरों के पास.

इन मजदूरों की बात से साफ है कि कंपनियां सरकार के आग्रह को नहीं मान रही हैं. जो मजदूर सालों से उनके लिए काम कर रहे थे वे उन पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. आखिर वो करें भी क्यों? कंपनियों ने बिना वेतन दिए उन्हें निकाल दिया है, सरकार का राशन उन तक पहुंच नहीं रहा? उस पर पुलिस की सख्ती. ऐसे में उन्हें अपने गांव का रास्ता ही सही लग रहा है.